Thursday, 26 June 2014

Khoj

तुम्हारे मुह को,
बक्से से खिॅच खाँच कर निकालने पर,
झाडझुडने से,
निकलता है दर्द:-बजता हे उसकी दुन्दुभि, गुजरता है जर्रे जर्रे मे, चिर काट कर रस्ता बनाए,
ओर अपनापन:- खुलता है  उसकी छत्रि, ओर डोरियाँ, शाखेँ, पत्ते, फुल ओर तितलयाँ ••
दिन शुरु नहीं  होता -छुप जाता हे यहां वहां,
खोजना पडता हे कहां कहां••

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